सेब के बीज

१९९५ में नई दिल्ली की गर्मी रिकॉर्ड पार कर चुकी थी, और ना सिर्फ उस तंदूर मर्डर केस की बदौलत जो घर घर में शाम की चाय के साथ वाद-विवाद का मुद्दा बन चुका थ। भारत की आर्थिक नीति का उदारीकरण, केबल टीवी चैनल, और नए शोरूम इस दौर के नए प्रतीक बन रहे थे और यह वह दिल्ली है जो अभी तक भारत की "विषाक्त मर्दानगी" या "बलात्कार राजधानी" के नाम से मशहूर नहीं हुई थी।

एक बाप और बेटे के बीच बढ़ती खाई, एक छोटी सी अखबार के पत्रकार की बजाज स्कूटर खरीद पाने की अभिलाषा, और एक ज़ोरों सी बढ़ता हुआ प्रछन्न युवा आंदोलन - इस नए भारत में मर्दों की नयी छवि कब और कैसे बन गयी?

चक पौलानिक व् उदय प्रकाश के लेखन और लेखक की व्यक्तिगत कहानियों से प्रेरित।

इस नाटक का विकास इंडियन एन्सेम्बल के द्वारा आयोजिक छह महीनों की "आइडियाज लैब" लेखन प्रयोगशाला में चाणक्य व्यास और कई अन्य समर्थको के मार्गदर्शन के साथ साथ किया गया है। इस यात्रा के बारे में और अधिक पढ़ने के लिए, फर्स्ट ड्राफ्ट ब्लॉग पर जाएँ।

लेखक सौदामिनी कालरा

भाषा हिंदुस्तानी

(ऊपर) बैंगलोर इंटरनेशनल सेंटर में इंडियन एन्सेम्बल और श्रीधर मूर्ति के सहयोग के साथ किया गया "सेब के बीज" का नाट्य वाचन/कला स्थापन. २०१९. मैथली पी. की तस्वीर (नीचे) फरवरी २०२० में मुंबई के ‘स्टूडियो तमाशा‘में आयोजित किया गया सुनील शानबाग द्वारा निर्देशित नाट्य वाचन ।

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